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सांविधानिक विधि

नगर निगम द्वारा अध्यारोपित रॉयल्टी

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 17-Oct-2024

पटना नगर निगम एवं अन्य बनाम मेसर्स ट्राइब्रो एड ब्यूरो एवं अन्य

“न्यायालय ने निर्णय दिया कि नगर निगम द्वारा होर्डिंग्स एवं विज्ञापनों के लिये ली जाने वाली ‘रॉयल्टी’ को ‘कर’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।”

जस्टिस विक्रम नाथ एवं अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि पटना नगर निगम द्वारा विज्ञापन कंपनियों से होर्डिंग्स के लिये ली जाने वाली 'रॉयल्टी' कोई कर नहीं है। इस निर्णय ने पटना उच्च न्यायालय के रॉयल्टी वापस करने के निर्देश को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे शुल्क अनिवार्य वसूली नहीं हैं तथा इसलिये वे भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 265 द्वारा परिभाषित कराधान के दायरे से बाहर हैं।

  • इस निर्णय में रॉयल्टी एवं कर के बीच अंतर को स्पष्ट करने वाले निर्णय का संदर्भ दिया गया।

पटना नगर निगम एवं अन्य बनाम मेसर्स ट्राइब्रो एड ब्यूरो एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 29 अगस्त 2005 को पटना नगर निगम ने विज्ञापन एजेंसियों के साथ एक बैठक की जिसमें यह सहमति बनी कि:
    • एजेंसियाँ ​​अपने विज्ञापनों का विवरण प्रस्तुत करेंगी, जिसमें स्थान, आकार आदि शामिल होंगे।
    • निगम, निगम की भूमि पर होर्डिंग्स के लिये प्रति वर्ष 1 रुपए प्रति वर्ग फुट की दर से रॉयल्टी वसूलेगा।
  • 15 जनवरी 2007 को निगम ने रॉयल्टी दरों में संशोधन किया:
    • विभिन्न प्रकार के होर्डिंग्स के लिये नई दरें निर्धारित की गईं।
    • प्रतिवादी कंपनी के लिये दर बढ़ाकर 10 रुपए प्रति वर्ग फुट प्रति वर्ष कर दी गई।
    • यह नई दर 2 नवंबर 2007 से प्रभावी हो गई।
  • एक महत्त्वपूर्ण विधायी परिवर्तन तब हुआ जब:
    • पटना नगर निगम अधिनियम, 1951 को निरसित कर दिया गया।
    • इसे बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
    • नया अधिनियम 5 अप्रैल 2007 से प्रभावी हुआ।
  • निगम ने कई प्रशासनिक कार्यवाही की:
    • 2 नवंबर 2007 को एक कार्यालय आदेश जारी किया गया, जिसमें विभिन्न रॉयल्टी/अर्थदण्ड की दरें निर्धारित की गईं।
    • इन दरों को 24 अगस्त 2007 से पूर्वव्यापी रूप से प्रभावी बनाया गया।
    • भुगतान न करने पर दोगुनी दर से अर्थदण्ड लगाया गया।
    • अनाधिकृत होर्डिंग्स के लिये पाँच गुना अर्थदण्ड लागू किया गया।
  • 15 दिसंबर 2010 को निगम परिषद द्वारा:
    • प्रस्ताव संख्या 18 पारित किया गया।
    • डिफॉल्टर विज्ञापन एजेंसियों का पंजीकरण रद्द करने का निर्णय लिया गया।
    • यह अवैध होर्डिंग डिस्प्ले एवं बकाया राशि का भुगतान न करने के कारण किया गया।
  • 11 फरवरी 2012 को निगम परिषद द्वारा :
    • निगम ने प्रतिवादी संख्या 1 से 64,50,040 रुपए की मांग की।
    • यह मांग नए अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न प्रस्तावों पर आधारित थी।
  • प्रतिवादी कंपनी द्वारा की गई कार्यवाहियाँ:
    • डिमांड नोटिस एवं दर संशोधन को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
    • प्रारंभिक न्यायालयी आदेशों के बाद, 21,98,000 रुपए की संशोधित मांग प्राप्त हुई।
    • जनवरी 2013 में गणना पर विवाद किया।
    • स्व-मूल्यांकन के अनुसार 1 रुपए प्रति वर्ग फुट की पुरानी दर से भुगतान जारी रखा।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ के निर्णय पर विश्वास करते हुए कहा कि विज्ञापन होर्डिंग्स के लिये नगर निगम द्वारा अध्यारोपित 'रॉयल्टी' को 'कर' या 'अनिवार्य वसूली' नहीं कहा जा सकता।
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि रॉयल्टी एवं कर मूलतः अलग-अलग विधिक अवधारणाएँ हैं, जिनके अलग-अलग अर्थ एवं आशय हैं, तथा इन नामकरणों का विधि में परस्पर विनिमय नहीं किया जा सकता।
  • न्यायालय ने अवधारित किया कि एक बार जब पक्षकार रॉयल्टी का भुगतान करने के लिये सहमत हो जाते हैं, तो उन्हें ऐसे निर्णय को चुनौती देने से रोक दिया जाता है, जब तक कि अधिकार क्षेत्र में अंतर्निहित कमी न हो या प्राधिकार का प्रयोग विधि या तथ्य के अनुसार विकृत या दुर्भावनापूर्ण न हो।
  • न्यायालय ने पाया कि अधिनियम की धारा 431 के अंतर्गत बढ़ी हुई रॉयल्टी वसूलने का निगम का संकल्प दोषपूर्ण था, लेकिन इससे पक्षकारों के साथ करार/समझ के आधार पर रॉयल्टी वसूलने की उसकी अंतर्निहित शक्ति अमान्य नहीं हो जाती। न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें निर्देश दिया गया था
  • न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें रॉयल्टी वापस करने का निर्देश दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि रॉयल्टी वसूलने की निगम की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 265 के अंतर्गत विधायी क्षमता से स्वतंत्र है।
  • न्यायसंगत आधार पर न्यायालय ने 10 रुपये प्रति वर्ग फुट की बढ़ी हुई दर का आदेश दिया, जो 6% साधारण ब्याज के साथ देय होगी। साथ ही, विलंबित भुगतान पर 10% ब्याज का प्रावधान भी होगा। यह बिहार एवं उड़ीसा लोक मांग वसूली अधिनियम, 1914 के अंतर्गत वसूल किया जाएगा।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 265 क्या है?

  • संवैधानिक अधिदेश:
    • अनुच्छेद 265 यह अवधारित करता है कि विधि के अधिकार के बिना कोई भी कर नहीं लगाया जाएगा या एकत्र नहीं किया जाएगा।
    • यह मनमाने कराधान के विरुद्ध एक मौलिक संवैधानिक सुरक्षा है।
    • यह प्रावधान भारत में वैध कर संग्रह के लिये आधारशिला के रूप में कार्य करता है।
  • विधायी प्राधिकार:
    • कर लगाने का समर्थन सक्षम विधायी निकायों द्वारा पारित वैध कानून द्वारा किया जाना चाहिये।
    • केवल संसद (केंद्रीय करों के लिये) या राज्य विधानमंडल (राज्य करों के लिये) के पास कर आरोपित करने का अधिकार है।
    • विधि में कर की प्रकृति, कर योग्य घटना, दर, देयता एवं संग्रह प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये।
  • संवैधानिक सीमाएँ:
    • करों को मनमाने ढंग से या भेदभावपूर्ण तरीके से नहीं लगाया जा सकता है।
    • कर विधियों को समानता एवं गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का पालन करना चाहिये।
    • अनुच्छेद 265 के अंतर्गत पूर्वव्यापी कराधान निषिद्ध है।
    • कर का बोझ भुगतान करने की क्षमता के आधार पर समान रूप से वितरित किया जाना चाहिये।
  • विधिक निहितार्थ:
    • किसी भी कर को आरोपित करने के लिये एक विशिष्ट संविधि को अधिकृत करना चाहिये।
    • कर विधान में कराधान के सभी आवश्यक तत्त्वों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये।
    • संविधि में मूल्यांकन एवं संग्रह के लिये उचित प्रक्रियाएँ निर्धारित की जानी चाहिये।
    • कर विधियों को सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिये।
  • न्यायिक पर्यवेक्षण:
    • अनुच्छेद 265 कराधान की न्यायिक समीक्षा के लिये आधार प्रदान करता है।
    • न्यायालय के पास कर विधियों की वैधता की जाँच करने का अधिकार है।
    • करदाता न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से असंवैधानिक करों को चुनौती दे सकते हैं।
    • न्यायालय संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले कर संविधियों को निरसित कर सकते हैं।
  • अधिकारों का संरक्षण:
    • यह प्रावधान करदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा करता है।
    • यह कर प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
    • यह सरकार द्वारा कर लगाने की शक्तियों के दुरुपयोग को रोकता है।
    • यह अवैध कराधान के विरुद्ध संवैधानिक उपाय प्रदान करता है।

रॉयल्टी एवं कर के बीच अंतर

  • रॉयल्टी:
    • आधार: पक्षों के बीच करार में निहित
    • प्रकृति: दिये गए अधिकारों एवं विशेषाधिकारों के लिये क्षतिपूर्ति
    • संबंध: अनुदानकर्त्ता को दिये गए लाभों या विशेषाधिकारों के साथ सीधा संबंध
    • शर्तें: अनुदाता एवं अनुदानकर्त्ता के मध्य समझौते द्वारा परिभाषित
  • कराधान:
    • आधार: सांविधिक शक्ति के अंतर्गत लगाया गया
    • प्रकृति: विशिष्ट लाभों के संदर्भ के बिना अनिवार्य वसूली
    • संबंध: भुगतानकर्त्ता के लिये विशेष लाभों से कोई सीधा संबंध नहीं
    • शर्तें: विधि द्वारा लागू, करार द्वारा नहीं
  • रॉयल्टी और कर के बीच अंतर:
    • सहमति: रॉयल्टी में आपसी सहमति शामिल होती है; करदाता की सहमति के बिना कर लगाए जाते हैं
    • उद्देश्य: रॉयल्टी विशिष्ट विशेषाधिकारों की भरपाई करती है; कर सामान्य सार्वजनिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं
    • लाभ सह-संबंध: रॉयल्टी का प्राप्त लाभों से सीधा संबंध होता है; करों का नहीं
    • विधिक ढाँचा: रॉयल्टी संविदात्मक होती है; कर सांविधिक होते हैं
    • क्विड प्रो क्वो: रॉयल्टी में मौजूद; करों में नहीं